Introduction: जब दुनिया हिल गई और Dalal Street ने महसूस किए झटके
फरवरी 2022 की वो सुबह शायद ही कोई भूल पाए, जब रूस ने यूक्रेन पर हमला बोल दिया। ये सिर्फ दो देशों के बीच की जंग नहीं थी, इसने पूरी दुनिया के Geo-politics, अर्थव्यवस्था और निश्चित रूप से, शेयर बाजारों को हिलाकर रख दिया। रूस-यूक्रेन युद्ध का भारतीय शेयर बाजार पर प्रभाव साफ नजर आया, क्योंकि भारत, जो दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, इससे अछूता कैसे रह सकता था?
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Toggleजैसे ही युद्ध की खबरें आईं, दुनिया भर के बाजारों में सुनामी सी आ गई। निवेशकों में डर (Panic) फैल गया और उन्होंने धड़ाधड़ अपने शेयर बेचने शुरू कर दिए। भारतीय शेयर बाजार, Sensex और Nifty भी इस गिरावट से बच नहीं पाए। सवाल ये था कि ये असर कितना गहरा होगा? क्या ये तूफान भारतीय बाजार को डुबो देगा या हम फिर से खड़े हो पाएंगे?
2025 में, जब इस युद्ध को तीन साल से ज्यादा हो चुके हैं, हम पीछे मुड़कर देख सकते हैं कि भारतीय शेयर बाजार ने इस मुश्किल दौर का सामना कैसे किया। ये कहानी उतार-चढ़ाव, डर, उम्मीद, सरकारी नीतियों और सबसे बढ़कर, भारतीय अर्थव्यवस्था की अंदरूनी ताकत की है। आइए, इस सफर को विस्तार से समझते हैं और देखते हैं कि आज हम कहाँ खड़े हैं। ये आर्टिकल पढ़ने के बाद आपको इस विषय पर शायद ही कहीं और जाने की जरूरत पड़े!
Phase 1: शुरुआती झटका और डर का माहौल (फरवरी – जून 2022)
मार्केट का Freefall
युद्ध शुरू होते ही, भारतीय बाजारों में भारी बिकवाली देखी गई। Sensex और Nifty कुछ ही दिनों में 8-10% तक गिर गए। निवेशकों को लगा कि कहीं दुनिया तीसरे विश्व युद्ध की तरफ तो नहीं बढ़ रही।
VIX का रॉकेट बनना
India VIX, जिसे ‘डर का मीटर’ (Fear Index) भी कहते हैं, आसमान छूने लगा। यह 30-35 के लेवल तक पहुँच गया, जो बताता था कि बाजार में कितनी अनिश्चितता और घबराहट है।
FIIs की भगदड़
विदेशी संस्थागत निवेशक (Foreign Institutional Investors – FIIs) हमेशा से उभरते बाजारों (Emerging Markets) जैसे भारत से पैसा निकालने में आगे रहते हैं जब दुनिया में Risk बढ़ता है। युद्ध शुरू होते ही उन्होंने भारतीय बाजार से भारी मात्रा में पैसा निकालना शुरू कर दिया। 2022 में FIIs ने रिकॉर्ड तोड़ बिकवाली की, जिससे रुपये पर भी दबाव बढ़ा।
Crude Oil की आग
रूस दुनिया के सबसे बड़े तेल और गैस उत्पादकों में से एक है। युद्ध और पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों (Sanctions) के कारण Crude Oil की कीमतें $120-130 प्रति बैरल तक पहुँच गईं। भारत अपनी जरूरत का 85% से ज्यादा तेल आयात (Import) करता है, इसलिए ये हमारे लिए बहुत बड़ी चिंता का विषय बन गया। इससे Inflation (महंगाई) बढ़ने का खतरा पैदा हो गया।
Metals और Commodities में उबाल
रूस और यूक्रेन कई Metals (जैसे Nickel, Aluminium) और कृषि उत्पादों (जैसे गेहूं, सूरजमुखी तेल) के बड़े निर्यातक (Exporter) हैं। Supply Chain में रुकावट आने से इनकी कीमतें भी आसमान छूने लगीं।
इस शुरुआती दौर में माहौल काफी निराशाजनक था। कई Experts मान रहे थे कि भारतीय बाजार और गहरे संकट में फँस सकता है।
Phase 2: Global Inflation, Interest Rate Hike और Supply Chain का संकट (2022-2023)
युद्ध ने सिर्फ शेयर बाजार को ही नहीं, बल्कि पूरी वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया।
Inflation Monster:
Crude Oil और अन्य Commodities की बढ़ती कीमतों ने पूरी दुनिया में महंगाई को बढ़ा दिया। अमेरिका और यूरोप में महंगाई 40 सालों के उच्चतम स्तर पर पहुँच गई। भारत में भी Retail Inflation RBI के 6% के लक्ष्य से ऊपर चला गया।
Central Banks का एक्शन
बढ़ती महंगाई को काबू में करने के लिए अमेरिका के Federal Reserve (Fed) ने ब्याज दरें (Interest Rates) बढ़ाना शुरू कर दिया। इसके बाद दुनियाभर के Central Banks, जिसमें हमारा RBI (Reserve Bank of India) भी शामिल था, ने भी ब्याज दरें बढ़ाईं।
- क्यों बढ़ाए Rate? ब्याज दरें बढ़ाने से लोन महंगे हो जाते हैं, जिससे लोग और कंपनियाँ कम खर्च करते हैं। इससे Economy थोड़ी धीमी होती है और महंगाई कम होने की उम्मीद रहती है।
- बाजार पर असर: बढ़ती ब्याज दरें शेयर बाजार के लिए अच्छी नहीं मानी जातीं, क्योंकि कंपनियों के लिए कर्ज लेना महंगा हो जाता है और निवेशक अपना पैसा शेयरों से निकालकर Fixed Income (जैसे सरकारी बॉन्ड) में लगाने लगते हैं जहाँ Risk कम होता है।
Supply Chain Disruption
युद्ध और चीन में लगे COVID Lockdowns ने वैश्विक Supply Chains को और बिगाड़ दिया। कंपनियों को कच्चा माल (Raw Material) मिलने और तैयार माल (Finished Goods) भेजने में दिक्कतें आने लगीं।
इन वैश्विक कारणों से 2022 का बाकी साल और 2023 की शुरुआत भारतीय बाजार के लिए काफी Volatile (उतार-चढ़ाव भरी) रही। FIIs की बिकवाली जारी रही, हालांकि उसकी रफ्तार थोड़ी कम हुई।
Phase 3: भारत की Resilience और दुनिया से अलग चाल (2023 – 2024)
जब पूरी दुनिया महंगाई, मंदी (Recession) की आशंका और बढ़ते Interest Rates से जूझ रही थी, तब भारतीय अर्थव्यवस्था और शेयर बाजार ने गजब की Resilience (लचीलापन) दिखाई। ऐसा क्यों हुआ?
मजबूत Domestic Demand
भारत की सबसे बड़ी ताकत उसकी विशाल घरेलू आबादी और खपत (Consumption) है। वैश्विक मंदी की आशंकाओं के बावजूद, भारत में मांग बनी रही, जिसने अर्थव्यवस्था को सहारा दिया।
DIIs का सहारा
जब FIIs बेच रहे थे, तब घरेलू संस्थागत निवेशक (Domestic Institutional Investors – DIIs) जैसे Mutual Funds और Insurance Companies ने जमकर खरीदारी की। इसमें सबसे बड़ा योगदान रहा आम निवेशकों का, जिन्होंने Systematic Investment Plans (SIPs) के जरिए लगातार पैसा लगाना जारी रखा। SIP का आंकड़ा हर महीने रिकॉर्ड बनाता गया, जो भारतीय Retail Investors के बढ़ते भरोसे को दिखाता था। DIIs ने बाजार को गिरने से काफी हद तक संभाला।
सरकार का Capex Push
सरकार ने Infrastructure (जैसे सड़कें, रेलवे, पोर्ट्स) पर अपना खर्च (Capital Expenditure – Capex) काफी बढ़ा दिया। इससे अर्थव्यवस्था को गति मिली और Cement, Steel, Capital Goods जैसी कंपनियों को फायदा हुआ।
PLI Schemes का असर
सरकार की Production-Linked Incentive (PLI) योजनाओं ने Manufacturing को बढ़ावा दिया, खासकर Electronics, Pharma, Auto Components जैसे क्षेत्रों में। इससे भारत को वैश्विक Supply Chain में एक विकल्प के रूप में देखा जाने लगा (China+1 Strategy)।
Crude Oil का जुगाड़
भारत ने अपनी ऊर्जा जरूरतों को देखते हुए पश्चिमी देशों के दबाव के बावजूद रूस से रियायती दरों (Discounted Price) पर भारी मात्रा में कच्चा तेल खरीदना जारी रखा। इससे भारत को Crude Oil की ऊंची कीमतों से कुछ राहत मिली और महंगाई को काबू में रखने में मदद मिली। ये एक बड़ा Strategic कदम साबित हुआ।
RBI का संतुलित रुख
RBI ने महंगाई को काबू में रखने के लिए ब्याज दरें बढ़ाईं, लेकिन साथ ही अर्थव्यवस्था की Growth का भी ध्यान रखा। उन्होंने बाजार में जरूरत के मुताबिक Liquidity (पैसा) बनाए रखा और रुपये को स्थिर रखने के लिए अपने Forex Reserves का भी इस्तेमाल किया।
इन कारणों से, भारतीय बाजार ने वैश्विक बाजारों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया। जब अमेरिकी और यूरोपीय बाजार संघर्ष कर रहे थे, तब भारतीय बाजार धीरे-धीरे रिकवर कर रहा था।

Phase 4: सेक्टर्स पर असर – कौन हीरो, कौन ज़ीरो? (March 2025 तक)
युद्ध का असर हर सेक्टर पर अलग-अलग रहा:
Energy (Oil & Gas)
- शुरुआती असर: ऊंची Crude कीमतों से ONGC जैसी Upstream कंपनियों को फायदा हुआ, लेकिन BPCL, HPCL, IOCL जैसी Oil Marketing Companies (OMCs) को नुकसान हुआ क्योंकि वे बढ़ती लागत का पूरा बोझ ग्राहकों पर नहीं डाल पा रही थीं।
- बाद का असर (2024-25): रूस से सस्ते तेल के आयात ने OMCs को थोड़ी राहत दी। Crude की कीमतें भी $80-90 के दायरे में स्थिर हुईं। Reliance Industries जैसी कंपनियों ने अपनी मजबूत Refining क्षमता का फायदा उठाया। सरकार का फोकस Renewable Energy (Solar, Wind, Green Hydrogen) पर बढ़ने से इस सेक्टर की कंपनियों में भी निवेशकों की रुचि बढ़ी।
Metals
- शुरुआती असर: रूस और यूक्रेन बड़े Metal उत्पादक हैं। Supply रुकने की आशंका से Steel, Aluminium, Nickel की कीमतें आसमान पर पहुँच गईं। Tata Steel, Hindalco, JSW Steel जैसी कंपनियों के शेयर चढ़े।
- बाद का असर (2024-25): वैश्विक मंदी की आशंका और चीन में मांग कम होने से कीमतें नीचे आईं। हालांकि, भारत में मजबूत घरेलू मांग (Infra, Auto, Real Estate) ने भारतीय Metal कंपनियों को सहारा दिया। Input Cost (जैसे कोयला) कम होने से भी मदद मिली।
IT Sector
- शुरुआती असर: थोड़ी चिंता थी कि यूरोप (जो भारतीय IT कंपनियों के लिए बड़ा बाजार है) में मंदी आने से IT खर्च कम हो सकता है। रूस में ऑपरेशन बंद करने पड़े।
- बाद का असर (2024-25): डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर होने से IT कंपनियों को फायदा हुआ (क्योंकि उनकी कमाई डॉलर में होती है)। कंपनियों ने नए बाजारों (जैसे मध्य पूर्व, एशिया) पर फोकस बढ़ाया। Digital Transformation, Cloud, AI जैसी Services की मांग बनी रही। हालांकि, वैश्विक अनिश्चितताओं के कारण Growth थोड़ी धीमी जरूर हुई, लेकिन सेक्टर ने Resilience दिखाई। TCS, Infosys, Wipro जैसी कंपनियों ने अच्छा प्रदर्शन जारी रखा।
FMCG (Fast Moving Consumer Goods)
- असर: महंगाई (खासकर खाने-पीने की चीजें और ईंधन) बढ़ने से कंपनियों की Input Cost बढ़ी। ग्रामीण इलाकों में मांग पर थोड़ा असर पड़ा। HUL, ITC, Nestle जैसी कंपनियों ने दाम बढ़ाकर या छोटे पैक निकालकर Margin बचाने की कोशिश की।
- बाद का असर (2024-25): महंगाई थोड़ी कम होने और अच्छे मानसून से मांग में सुधार देखा गया। शहरी मांग मजबूत बनी रही।
Auto Sector
- असर: ऊंची Metal कीमतें और Chip Shortage (जो पहले से थी, युद्ध से थोड़ी और बढ़ी) ने कंपनियों को परेशान किया। ईंधन की बढ़ती कीमतों ने भी बिक्री पर असर डाला।
- बाद का असर (2024-25): Chip Shortage कम हुई, Input Costs स्थिर हुईं, नए Launches और खासकर SUVs की मजबूत मांग ने सेक्टर को सहारा दिया। Electric Vehicle (EV) सेगमेंट में भी काफी एक्शन देखने को मिला। Maruti Suzuki, Tata Motors, M&M अच्छा कर रहे हैं।
Banking & Finance
- असर: बढ़ती ब्याज दरों से Net Interest Margins (NIMs) सुधरने की उम्मीद थी, लेकिन Loan Growth पर असर की आशंका थी। FII बिकवाली का असर Private Banks के शेयरों पर ज्यादा दिखा।
- बाद का असर (2024-25): भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती के कारण Credit Growth (लोन की मांग) मजबूत बनी रही। Asset Quality (NPAs) में लगातार सुधार हुआ। मजबूत घरेलू निवेश प्रवाह ने Banking Stocks को समर्थन दिया।
Defence
- असर: यह सेक्टर युद्ध के माहौल में एक स्पष्ट विजेता बनकर उभरा। सरकार का ‘आत्मनिर्भर भारत’ पर जोर और रक्षा बजट में बढ़ोतरी से घरेलू Defence कंपनियों जैसे HAL, BEL, Bharat Dynamics के शेयरों में जबरदस्त तेजी आई। भारत अब Defence Equipment का निर्यातक भी बन रहा है।
Chemicals & Fertilizers
- असर: रूस और बेलारूस Fertilizer के बड़े सप्लायर हैं। Supply बाधित होने से कीमतें बढ़ीं। भारत सरकार को Fertilizer Subsidy बढ़ानी पड़ी। कंपनियों ने वैकल्पिक स्रोत तलाशे और घरेलू उत्पादन बढ़ाने पर जोर दिया। Specialty Chemicals कंपनियों पर भी यूरोप में मंदी की आशंका का असर दिखा।
Phase 5: निवेशक का बदलता नज़रिया और बाजार की परिपक्वता (Maturity)
FIIs vs DIIs
यह दौर FIIs की बिकवाली और DIIs की खरीदारी के बीच की जंग के रूप में याद किया जाएगा। DIIs ने साबित किया कि भारतीय बाजार अब सिर्फ FIIs के भरोसे नहीं है। 2024 के अंत और 2025 की शुरुआत में FIIs धीरे-धीरे भारतीय बाजार में वापस लौटने लगे, जो भारत की Growth Story में उनके बढ़ते विश्वास को दिखाता है।
Retail Investors का दम
SIP के जरिए लगातार निवेश करने वाले लाखों छोटे निवेशकों ने बाजार को गहराई दी और गिरने पर खरीदारी (Buy on Dips) की मानसिकता दिखाई। यह भारतीय बाजार की परिपक्वता का संकेत है।
Volatility में कमी
2022 के उच्च स्तरों से India VIX धीरे-धीरे नीचे आया और मार्च 2025 तक 18-22 के सामान्य स्तरों पर स्थिर हो गया। इसका मतलब है कि बाजार में घबराहट कम हुई है और निवेशक अब ज्यादा समझदारी से निवेश कर रहे हैं।
आज की तस्वीर (First Quarter 2025): हम कहाँ हैं?
First Quarter 2025 तक, भारतीय शेयर बाजार ने न केवल शुरुआती झटकों को सहा, बल्कि नई ऊंचाइयों को भी छुआ।
Sensex और Nifty
Sensex 75,000 और Nifty 22,500 के मनोवैज्ञानिक स्तरों को पार कर चुके हैं।
Sentiment
बाजार में कुल मिलाकर सकारात्मक (Positive) माहौल है, लेकिन वैश्विक अनिश्चितताओं को लेकर थोड़ी सावधानी भी है।
Key Drivers
मजबूत घरेलू अर्थव्यवस्था, सरकार का इंफ्रा पर जोर, बढ़ता घरेलू निवेश (SIP Power!), और कंपनियों के बेहतर तिमाही नतीजे (Quarterly Results) बाजार को सपोर्ट कर रहे हैं।
Key Risks
- Global Slowdown: अगर अमेरिका या यूरोप में मंदी गहराती है, तो इसका असर भारत के Exports और FII निवेश पर पड़ सकता है।
- Geopolitics: युद्ध का लंबा खिंचना या कहीं और नया तनाव पैदा होना अभी भी एक रिस्क है।
- Inflation: हालांकि काबू में है, लेकिन Crude Oil या खाने-पीने की चीजों की कीमतें फिर से बढ़ना चिंता का विषय बन सकता है।
आगे क्या? भविष्य की राह (Looking Ahead)
रूस-यूक्रेन युद्ध ने दुनिया को और भारतीय बाजार को कई सबक सिखाए हैं। इसने वैश्विक Supply Chains की कमजोरियों को उजागर किया और ऊर्जा सुरक्षा (Energy Security) के महत्व को समझाया।
भारत के लिए, यह संकट एक अवसर भी लेकर आया:
Manufacturing Hub बनने का मौका
दुनिया की कंपनियां China+1 रणनीति के तहत भारत को एक आकर्षक विकल्प मान रही हैं। PLI योजनाएं इसे और बढ़ावा दे रही हैं।
Energy Transition
Renewable Energy और Green Hydrogen पर फोकस भारत की ऊर्जा निर्भरता कम करेगा और भविष्य की Growth का रास्ता खोलेगा।
Domestic Strength पर भरोसा
भारतीय बाजार ने साबित किया है कि वह अब बाहरी झटकों को झेलने में पहले से ज्यादा सक्षम है, जिसका श्रेय मजबूत घरेलू अर्थव्यवस्था और बढ़ते घरेलू निवेश को जाता है।
Conclusion: सावधानी के साथ आशावाद
पिछले तीन साल भारतीय शेयर बाजार के लिए एक Rollercoaster Ride की तरह रहे हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध ने गंभीर चुनौतियाँ पेश कीं, लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था और बाजार ने उम्मीद से बेहतर Resilience दिखाई। Discounted रूसी तेल का आयात एक मास्टरस्ट्रोक साबित हुआ, वहीं DIIs और Retail Investors ने बाजार को थामे रखा।
First quarter-2025 में, हम कह सकते हैं कि भारतीय शेयर बाजार वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच एक मजबूत खिलाड़ी के रूप में खड़ा है। हालांकि, आगे की राह आसान नहीं है। वैश्विक जोखिमों पर नजर रखनी होगी। लेकिन भारत की मजबूत घरेलू कहानी, जनसांख्यिकी (Demographics), बढ़ते मध्यम वर्ग और सरकार के सुधारों पर फोकस इसे Long Term के लिए एक आकर्षक निवेश स्थल बनाते हैं।
निवेशकों के लिए सबक यही है कि घबराहट में बेचने की बजाय, अच्छी कंपनियों में लंबी अवधि के लिए निवेशित रहना और ‘Buy on Dips’ की रणनीति अपनाना फायदेमंद हो सकता है। भारतीय शेयर बाजार की कहानी अभी खत्म नहीं हुई है, बल्कि यह तो एक नए अध्याय की शुरुआत लगती है!
FAQs: रूस-यूक्रेन युद्ध और शेयर बाजार: क्या आपके मन में भी ये सवाल हैं?
रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने पर भारतीय बाजार इतना क्यों गिरा, लेकिन बाद में दूसरे बाजारों से बेहतर क्यों रहा?
उत्तर: युद्ध शुरू होते ही वैश्विक अनिश्चितता (Global Uncertainty) और डर (Panic) के कारण दुनिया भर के बाजारों के साथ भारतीय बाजार भी गिरा। विदेशी निवेशकों (FIIs) ने तेजी से पैसा निकाला और Crude Oil, Metals जैसी चीजों के दाम बढ़ने से महंगाई (Inflation) का खतरा बढ़ गया, जिससे गिरावट आई।
लेकिन बाद में भारत बेहतर इसलिए रहा क्योंकि:
- मजबूत घरेलू मांग (Strong Domestic Demand): भारत की अपनी खपत मजबूत बनी रही।
- DIIs का सहारा: घरेलू निवेशकों (DIIs), खासकर Mutual Funds और SIP करने वाले छोटे निवेशकों ने लगातार खरीदारी जारी रखी, जिसने FIIs की बिकवाली के असर को कम किया।
- सरकारी नीतियाँ: सरकार ने Infrastructure पर खर्च बढ़ाया (Capex Push) और PLI जैसी योजनाओं से Manufacturing को बढ़ावा दिया।
- रियायती रूसी तेल: भारत ने रूस से सस्ते दाम पर तेल खरीदना जारी रखा, जिससे महंगाई पर कुछ हद तक लगाम लगी और अर्थव्यवस्था को थोड़ी राहत मिली।
इस युद्ध के माहौल (2022-2025) के दौरान कौन से सेक्टर्स ने अच्छा प्रदर्शन किया और कौन दबाव में रहे?
उत्तर:
- अच्छा प्रदर्शन करने वाले सेक्टर्स:
- Defence: सरकार के ‘आत्मनिर्भर भारत’ पर जोर और बढ़ते रक्षा बजट के कारण Defence कंपनियों (जैसे HAL, BEL) के शेयरों में ज़बरदस्त तेज़ी आई।
- Capital Goods/Infrastructure: सरकारी खर्च बढ़ने से इन सेक्टर्स को फायदा हुआ।
- Banking: मजबूत Credit Growth और सुधरती Asset Quality के कारण Banking सेक्टर ने अच्छा प्रदर्शन किया।
- Energy (Upstream) और Metals: शुरुआती दौर में बढ़ी कीमतों का इन्हें फायदा मिला, हालांकि बाद में कीमतें कम हुईं।
- दबाव में रहने वाले सेक्टर्स:
- Oil Marketing Companies (OMCs): ऊंची Crude कीमतों का बोझ झेलना पड़ा।
- IT Sector: यूरोप में मंदी की आशंका और वैश्विक अनिश्चितता के कारण कुछ दबाव देखा गया, हालांकि कमजोर रुपये से कुछ राहत मिली।
- FMCG/Auto: महंगाई के कारण Input Cost बढ़ी और मांग पर (खासकर ग्रामीण इलाकों में) थोड़ा असर पड़ा।
मार्च 2025 तक इस पूरे घटनाक्रम से निवेशकों के लिए मुख्य सीख (Key Takeaways) क्या हैं?
उत्तर: निवेशकों के लिए मुख्य सीख हैं:
- घबराहट में न बेचें: बाजार में गिरावट अक्सर अस्थायी होती है। डर में आकर अच्छे निवेश को बेचना नुकसानदायक हो सकता है।
- SIP की ताकत: Systematic Investment Plan (SIP) के जरिए लगातार निवेश करते रहना Volatility को मात देने और लंबी अवधि में अच्छा रिटर्न पाने का प्रभावी तरीका है, जैसा DIIs के मजबूत फ्लो ने दिखाया।
- भारत की घरेलू कहानी पर भरोसा: भारतीय अर्थव्यवस्था की अपनी ताकत (Domestic Strength) है जो इसे बाहरी झटकों को झेलने में मदद करती है।
- Diversification: अपने निवेश को अलग-अलग सेक्टर्स और Asset Classes में बांटकर रखना जोखिम कम करता है।
- क्वालिटी पर फोकस: मुश्किल समय में अच्छी Management और मजबूत Fundamentals वाली कंपनियाँ बेहतर प्रदर्शन करती हैं। वैश्विक जोखिमों पर नज़र रखें, लेकिन भारत की Long-term Growth पर विश्वास बनाए रखें।